jalandhar, December 13, 2021 11:45 am
कृषि सुधार के कानूनों की वापसी के साथ एमएसपी(न्यूनतम समर्थन मूल्य)समेत अन्य मांगों पर सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों को समझाकर भले ही लौटा दिया हो, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा के सांसद वरुण गांधी ने एमएसपी की कानूनी गारंटी का निजी विधेयक पेश करने का एलान कर सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। कृषि कानून विरोधी आंदोलन को लेकर वरुण गांधी लगातार अपनी सरकार पर निशाना साधने से बाज नहीं आए। अब उन्होंने लोकसभा में इसी सप्ताह निजी विधेयक पेश करने की घोषणा कर दी है। वरुण ने ट्वीट कर बताया है कि उन्होंने विधेयक का मसौदा लोकसभा सचिवालय को सौंप दिया है। उन्होंने इसके प्रविधानों पर सुझाव भी मांगा है।
भाजपा सांसद ने अपने ट्वीट में कहा है कि भारत के किसानों और सरकार ने बहुत बार कृषि और उससे जुड़े मुद्दों पर चर्चा की है। लेकिन अब न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानून बनाने का समय आ गया है। सरकार द्वारा कृषि कानून की वापसी और एमएसपी पर कमेटी के गठन की घोषणा के बाद भी उन्होंने एमएसपी की कानूनी गारंटी का मुद्दा उठाया है।
वरुण के निजी विधेयक के अहम प्रविधानों में सिर्फ 22 फसलों के ही एमएसपी की कानूनी गारंटी के साथ खरीद की परिकल्पना की गई है। उनके हिसाब से इन फसलों का सालाना वित्तीय परिव्यय एक लाख करोड़ रुपये है। इस सूची में कृषि उत्पादों की जरूरत के आधार पर फसलों को शामिल किया जा सकेगा।
एमएसपी का आधार उत्पादन लागत पर 50 प्रतिशत लाभांश होगा। एमएसपी से कम मूल्य पाने वाला किसान गारंटी युक्त एमएसपी के बीच के अंतर के मुआवजे का हकदार होगा। प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, फसलों का वर्गीकरण उसके गुणवत्ता मानकों के आधार पर होगा। फसल भंडारण के बदले किसानों को ऋण का प्रविधान है।
किसानों को समय से भुगतान के साथ उनकी फसलों के लिए एमएसपी की गारंटी दी जाएगी। उपज की खरीद के दो दिनों के भीतर किसानों के खाते में धन जमा कराने का प्रविधान होगा। किसी वजह से किसानों को अगर एमएसपी नहीं मिलता तो सरकार बिक्री मूल्य और एमएसपी के बीच के अंतर का भुगतान एक सप्ताह में करेगी। यह विधेयक फसलों की विविधता को बढ़ावा देने के लिए हर ब्लाक में उपयुक्त फसलों की खेती की सिफारिश करता है।
विधेयक में प्रत्येक पांच गांव के बीच एक खरीद केंद्र बनाने और आपूर्ति श्रृंखला के बुनियादी ढांचे के निर्माण का प्रविधान किया गया है। इस विधेयक के प्रविधानों को लागू करने में आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए 30 दिनों के भीतर विवाद को समाप्त करने की न्यायिक व्यवस्था होनी चाहिए।
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