Jalandhar, April 26, 2023
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को राजनीति का बाबा बोहर कहा जाता था। उन्होंने राजनीति में लंबी पारी खेली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का बहुत सम्मान करते थे। वाराणसी लोकसभा चुनाव 2019 में पीएम मोदी ने जब नामांकन पत्र दाखिल किया तो उन्होंने दिवंगत नेता प्रकाश सिंह बादल के पैर छुए। इतना ही नहीं, आतंकवाद के दौर में पीएम मोदी को बीजेपी के नेता के तौर पर पंजाब का प्रभारी बनाया गया था, जिसके चलते उनके बादल परिवार से अच्छे संबंध थे।
2015 में पीएम मोदी ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में प्रकाश बादल को भारत का नेल्सन मंडेला कहा था। पीएम मोदी ने कहा था कि बादल एक महान नेता हैं जिन्हें आजाद भारत में संघर्ष करते हुए विभिन्न कारणों से करीब दो दशकों तक जेल में रहना पड़ा।मोदी के भाषण के तुरंत बाद ट्विटर पर हैशटैग #YoBadalSoMandela सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा।
दरअसल, 2015 में दिल्ली के विज्ञान भवन में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 113वीं जयंती के मौके पर एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल पर अपने अनुभव साझा किए थे। हालांकि पीएम मोदी की इस बात को लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने खूब बवाल काटा। आपको बता दें कि 1992 तक बीजेपी और अकाली दल ने पंजाब में अलग-अलग चुनाव लड़ा और बाद में मिलकर सरकार बनाई।1996 में, अकाली दल ने 'मोगा घोषणा' पर हस्ताक्षर किए और 1997 में पहली बार भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा।
मोगा घोषणापत्र में तीन बातों पर जोर दिया गया था। पहला, पंजाबी अस्मिता, दूसरा, आपसी सौहार्द और राष्ट्रीय सुरक्षा, तीसरा, 1984 के दंगों के बाद इस आपसी सौहार्द के माहौल को देखकर दोनों पक्ष एक मंच पर आ गए।जबकि साल 2020 में कृषि कानूनों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल ने बीजेपी से दूरी बना ली थी। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल की पत्नी और तत्कालीन खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने अध्यादेश को किसान विरोधी बताते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
बादल, जो राज्य की सिख-केंद्रित राजनीति के केंद्र में थे, धार्मिक सिख संगठनों - एसजीपीसी और डीएसजीपीसी में भी प्रभाव रखते थे। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1947 में की थी। वे अपने गांव बादल के सरपंच और तत्कालीन ब्लॉक समिति लंबी के अध्यक्ष थे। वह पहली बार 1957 में राजनीतिक दल शिरोमणि अकाली दल के टिकट पर पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए थे।
इसके बाद वे 1969 में विधायक भी चुने गए और राज्य सरकार में सामुदायिक विकास, पंचायती राज, पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्री बने। उनकी पार्टी को 1972, 1980 और 2002 में विपक्ष में बैठना पड़ा और फिर बादल विधानसभा में विपक्ष के मजबूत नेता के रूप में भी सफल हुए। 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में उन्होंने लंबी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा था। आम आदमी पार्टी के आंदोलन में उन्हें अपनी सीट गंवानी पड़ी थी। चुनाव लड़ते ही उनके नाम देश के सबसे उम्रदराज उम्मीदवार का रिकॉर्ड जुड़ गया।
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