jalandhar, February 18, 2021 6:59 pm
बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट आमदनी का अच्छा जरिया नहीं हैं. महंगाई का असर शामिल करके देखें तो फिक्स्ड डिपॉजिट (और अन्य ब्याज से जुड़े एसेट) हमेशा ही एक खराब दांव रहे हैं. असल में रेगुलर इनकम हासिल करने के लिए और खासतौर से रिटायरमेंट के बाद के दिनों के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड हमेशा ही सबसे अच्छे ऑप्शन रहे हैं. ऐसे में अगर भी पैसा लगाने की सोच रहे हैं तो दो नए फंड बाजार में आए है. आइए जानें उनके बारे में…
मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंट कंपनी ने दो नई स्कीमें लॉन्च की हैं. इनका नाम है मोतीलाल ओसवाल एसेट एलोकेशन पैसिव फंड ऑफ फंड – एग्रेसिव और मोतीलाल ओसवाल एसेट एलोकेशन पैसिव फंड ऑफ फंड – कंजर्वेटिव है. ये दोनों फंड ऑफ फंड (एफओएफ) कंपनी के डिजिटल पार्टनर ग्रो एप पर भी उपलब्ध हैं.
मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंट का कहना है कि आज बाजार में निवेश के हजारों विकल्प मौजूद हैं. हमें लगता है कि यह एकमात्र फंड निवेशकों की जरूरत के लिए पर्याप्त है.
शेयर बाजार अपने शिखर पर हैं. डेट यील्ड निचले स्तरों पर हैं. गोल्ड 2020 में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला एसेट साबित हुआ है. ऐसे माहौल में हमारा मानना है कि कम जोखिम के साथ अच्छे रिटर्न पाने के लिए निवेश का सबसे अच्छा तरीका अलग-अलग एसेट्स में पैसा लगाना है.
ये स्कीमें 100 फीसदी पैसिव मल्टी एसेट एफओएफ हैं. इनका इक्विटी, इंटरनेशल इक्विटी, फिक्स्ड इनकम और कमोडिटी में निवेश होगा. यह निवेशकों को अपनी जोखिम क्षमता या निवेश लक्ष्यों के अनुसार अलग-अलग तरह के एसेट्स में निवेश करने का मौका देगा.
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि म्यूचुअल फंड एसआईपी कोई भी 20 साल में किए गए निवेश पर कम से कम 12 फीसदी रिटर्न की उम्मीद कर सकता है. एक बार जब बाजार स्थिर हो जाए, तो केवल वापसी की समीक्षा करनी चाहिए. निवेशक को समीक्षा के आधार पर तय करना चाहिए कि वर्तमान योजना के साथ जारी रखना है या स्विच करना है.
फंड ऑफ फंड यानी एफओएफ म्यूचुअल फंड की ऐसी स्कीमें होती हैं जो दूसरी स्कीमों में निवेश करती हैं. ये म्यूचुअल फंड स्कीमें फंड हाउस की अपनी या किसी दूसरे फंड हाउस की हो सकती हैं.
फंड हाउस के अनुसार, ये फंड निवेश में स्ट्रैटेजिक रीबैलेंसिंग की फिलॉसफी फॉलो करेंगे. इससे मार्केट की टाइमिंग का जोखिम खत्म होगा. इसमें फंड मैनेजर रिस्क या क्रेडिट रिस्क नहीं जुड़ा है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि एक्टिव फंड और पैसिव फंड में अंतर करना आसान हैं. फंड मैनेजर्स, एक्टिव फंड को मैनेज करते हैं. एक्टिव फंड में रिबैलेंसिंग की जरूरत होती है जबकि पैसिव फंड में इंडेक्स की तरह काम करते हैं. शेयर्स में बदलाव से रिबैलेंसिंग की जरूरत होती है. ईटीएफ या इंडेक्स फंड पैसिव फंड के उदाहरण है.
बाजार में उतार-चढ़ाव के हिसाब से एक्टिव फंड में निवेश किया जाता है. इसमें मैनेजर स्कीम से इक्विटी और फिक्सड इनकम में निवेश कर सकेगा. वहीं पैसिव फंड में फिक्सड इनकम विकल्प का मौका नहीं होता.
रिटर्न के आधार पर अगर इन दोनों ही फंड्स के फर्क को समझना हो तो पैसिव फंड पर रिटर्न इंडेक्स जैसे ही मिलते है. एक्टिव फंड बेंचमार्क से बेहतर रिटर्न दे सकते हैं. निवेश के लिए रिस्क क्षमता होनी चाहिए. दोनों कैटेगरी के फंड में रिस्क रहता है. इसलिए लंबी अवधि में निवेश के लिए पैसिव फंड का चुनाव ही सहीं होता है.
एक्टिव फंड में निवेश पर 2.25-2.50 फीसदी चार्ज लगता है जबकि पैसिव फंड में निवेश पर 0.50-0.75 फीसदी चार्ज लगता है.
मौजूदा नियमों के अनुसार दोनों एफओएफ पर डेट इंस्ट्रूमेंट की तरह टैक्स लगेगा. इन फंडों को होल्ड करने वाले लंबी अवधि के निवेशक इंडेक्सेशन बेनिफिट क्लेम कर सकेंगे. इससे उनकी टैक्स देनदारी काफी कम हो जाएगी.
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